प्रोजेक्ट टाइगर” भारत में 1 अप्रैल, 1973 को शुरू हुआ था।
प्रोजेक्ट टाइगर: एक ऐतिहासिक संरक्षण अभियान
पृष्ठभूमि: क्यों हुई शुरुआत?
20वीं सदी की शुरुआत में भारत के जंगलों में बाघों की संख्या लगभग 40,000 थी। लेकिन, अनियंत्रित शिकार, शहरीकरण और वनों की कटाई के कारण यह संख्या 1970 के दशक तक गिरकर 2,000 से भी कम रह गई थी। भारत का राष्ट्रीय पशु खतरे में था। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, भारत सरकार ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत बाघों को बचाने के लिए एक विशाल और दूरदर्शी योजना की कल्पना की, जिसे प्रोजेक्ट टाइगर नाम दिया गया।
प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत
इस महत्वपूर्ण परियोजना का उद्घाटन 1 अप्रैल, 1973 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उत्तराखंड के प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में किया था। इसका मुख्य उद्देश्य बाघों को विलुप्त होने से बचाना और उनके प्राकृतिक आवासों को सुरक्षित रखना था।
प्रोजेक्ट टाइगर की मुख्य विशेषताएं
कोर-बफर रणनीति: इस परियोजना की सफलता का एक प्रमुख कारण "कोर-बफर" रणनीति थी।
कोर क्षेत्र: ये अभयारण्य के भीतर के वे मुख्य क्षेत्र थे, जहाँ मानव हस्तक्षेप पूरी तरह से वर्जित था। इसका उद्देश्य बाघों और अन्य वन्यजीवों को एक सुरक्षित और निर्बाध वातावरण प्रदान करना था।
बफर क्षेत्र: ये कोर क्षेत्रों के आसपास के क्षेत्र थे, जहाँ कुछ हद तक सीमित मानवीय गतिविधियाँ, जैसे कि पर्यटन और स्थानीय समुदायों की जीवन-यापन से संबंधित गतिविधियाँ, नियंत्रित तरीके से करने की अनुमति थी।
पहले नौ टाइगर रिजर्व: जब यह परियोजना शुरू हुई, तो इसे देश के नौ अलग-अलग राज्यों में नौ टाइगर रिजर्व के साथ लागू किया गया था। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
जिम कॉर्बेट (उत्तराखंड)
बांदीपुर (कर्नाटक)
कान्हा (मध्य प्रदेश)
मानस (असम)
रणथंभौर (राजस्थान)
सुंदरवन (पश्चिम बंगाल)
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA): 2005 में, बाघों के संरक्षण को और मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) का गठन किया गया था। यह संस्था पूरे भारत में बाघ संरक्षण की निगरानी करती है और नीतियों को लागू करती है।
बाघ जनगणना (Tiger Census): भारत में हर चार साल में बाघों की जनगणना की जाती है। यह जनगणना वैज्ञानिक तरीकों, जैसे कि कैमरा ट्रैपिंग और पगचिह्न विश्लेषण, का उपयोग करके की जाती है।
सफलता की कहानी
प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता एक शानदार मिसाल है। 1970 के दशक में जहाँ बाघों की संख्या 2,000 से कम थी, वहीं नवीनतम अनुमानों के अनुसार, भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 3,682 हो गई है। यह संख्या दुनिया के कुल बाघों की आबादी का लगभग 75% है। यह इस बात का प्रमाण है कि सही योजना और मजबूत कार्यान्वयन से विलुप्त होने की कगार पर पहुँच चुकी प्रजातियों को भी बचाया जा सकता है।