चित्तौड़गढ़ पर खिलजी का कब्जा: इतिहास और रानी पद्मिनी की कहानी

 

चित्तौड़गढ़ पर खिलजी का कब्जा: इतिहास और रानी पद्मिनी की कहानी


चित्तौड़ पर आक्रमण की तारीख: 26 अगस्त, 1303 को दिल्ली सल्तनत के शासक अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर कब्जा किया था।

आक्रमण के कारण: इतिहास बनाम किंवदंती

अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ पर आक्रमण के कई कारण बताए जाते हैं। इनमें से कुछ ऐतिहासिक हैं, जबकि कुछ लोककथाओं और महाकाव्यों पर आधारित हैं।

  1. रणनीतिक महत्व: चित्तौड़गढ़ का किला अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण बहुत महत्वपूर्ण था। यह दिल्ली से गुजरात और मालवा जाने वाले व्यापार मार्गों पर स्थित था। इस किले पर नियंत्रण स्थापित करना अलाउद्दीन खिलजी के साम्राज्य विस्तार के लिए बेहद जरूरी था।

  2. राणा रतन सिंह से बदला: कुछ इतिहासकारों का मानना है कि अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ के शासक राणा रतन सिंह से बदला लेने के लिए हमला किया था, क्योंकि रतन सिंह ने गुजरात की ओर जा रहे खिलजी के सैनिकों को मेवाड़ से गुजरने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।

  3. रानी पद्मिनी की कथा: यह आक्रमण का सबसे प्रसिद्ध, लेकिन विवादास्पद कारण है। 1540 में मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा अवधी भाषा में लिखे गए महाकाव्य "पद्मावत" के अनुसार, अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर इसलिए हमला किया क्योंकि वह राजा रतन सिंह की अत्यंत सुंदर रानी पद्मिनी को अपनी रानी बनाना चाहता था। हालांकि, कई आधुनिक इतिहासकार इस कहानी की ऐतिहासिकता पर सवाल उठाते हैं और इसे एक साहित्यिक रचना मानते हैं।

चित्तौड़ की घेराबंदी और युद्ध

  • घेराबंदी: अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने 28 जनवरी, 1303 को चित्तौड़गढ़ के किले को घेर लिया था। यह घेराबंदी लगभग 8 महीने तक चली। किले के अंदर खाने-पीने की सप्लाई रुक गई, जिससे स्थिति बहुत खराब हो गई थी।

  • युद्ध: जब यह स्पष्ट हो गया कि किला ज्यादा देर तक नहीं टिक पाएगा, तो राणा रतन सिंह ने जौहर और साका का फैसला किया। राजपूत योद्धाओं ने केसरिया वस्त्र धारण कर अंतिम युद्ध (साका) के लिए किले के दरवाजे खोल दिए।

  • वीरों का बलिदान: इस भयंकर युद्ध में राणा रतन सिंह और उनके दो वीर सेनापति गोरा और बादल लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

जौहर की घटना

जब युद्ध में राजपूतों की हार सुनिश्चित हो गई, तो रानी पद्मिनी ने अपनी आन-बान और स्वाभिमान की रक्षा के लिए जौहर करने का फैसला किया। "पद्मावत" के अनुसार, रानी पद्मिनी के साथ लगभग 16,000 अन्य राजपूत रानियों और महिलाओं ने भी जौहर किया। उन्होंने एक विशाल चिता में कूदकर अपने जीवन का बलिदान दे दिया ताकि वे खिलजी की सेना के हाथों न पड़ें। जब खिलजी की सेना किले में दाखिल हुई, तो उन्हें केवल जलती हुई राख मिली।

युद्ध के बाद

चित्तौड़ पर कब्जा करने के बाद, अलाउद्दीन खिलजी ने इस किले का नाम बदलकर अपने बेटे खिजर खां के नाम पर खिजराबाद रख दिया। हालांकि, बाद में इस किले को फिर से राजपूतों ने अपने अधिकार में ले लिया।

चित्तौड़ का यह युद्ध भारतीय इतिहास में राजपूतों के शौर्य, बलिदान और स्वाभिमान का एक अमर अध्याय है।

इस वीडियो में रानी पद्मिनी की जौहर स्थल और चित्तौड़गढ़ किले के इतिहास के बारे में बताया गया है। EP-16 | यहीं रानी पद्मिनी ने 16000 स्त्रियों सहित जौहर किया था | Chittorgarh fort