बाजीराव पेशवा पुण्यतिथि: अजेय मराठा योद्धा को एक श्रद्धांजलि

 

बाजीराव पेशवा पुण्यतिथि: अजेय मराठा योद्धा को एक श्रद्धांजलि
बाजीराव पेशवा पुण्यतिथि: अजेय मराठा योद्धा को एक श्रद्धांजलि


28 अप्रैल, 2025 - आज हम उस महान योद्धा की पुण्यतिथि मना रहे हैं, जिनके नाम से मुगल और अंग्रेज शासक थर-थर कांपते थे। पेशवा बाजीराव प्रथम, जिन्हें 'थोरले बाजीराव' और 'अपराजित हिन्दू सेनानी सम्राट' के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने 40 वर्ष के अल्प जीवन में मराठा साम्राज्य को अभूतपूर्व ऊंचाइयों तक पहुंचाया। इस लेख में, हम बाजीराव पेशवा की पुण्यतिथि के अवसर पर उनके जीवन, युद्ध कौशल, और मराठा साम्राज्य के विस्तार में उनके योगदान पर विस्तार से चर्चा करेंगे। यह लेख न केवल उनकी वीरता को श्रद्धांजलि है, बल्कि इतिहास के उन सुनहरे पन्नों को भी उजागर करता है, जो आज भी हमें प्रेरित करते हैं।

बाजीराव पेशवा: एक परिचय

18 अगस्त 1700 को चितपावन ब्राह्मण परिवार में जन्मे बाजीराव बल्लाल भट्ट, पेशवा बालाजी विश्वनाथ और राधाबाई के पुत्र थे। उनके पिता छत्रपति शाहूजी महाराज के प्रथम पेशवा थे, और बाजीराव ने बचपन से ही युद्ध कला और प्रशासनिक कौशल सीखा। मात्र 12 वर्ष की आयु में, वे अपने पिता के साथ युद्धक्षेत्र में उतर चुके थे। 1720 में, जब उनके पिता का निधन हुआ, तब छत्रपति शाहूजी ने 20 वर्षीय बाजीराव को पेशवा नियुक्त किया। यह निर्णय उस समय विवादास्पद था, क्योंकि कई वरिष्ठ मंत्रियों को युवा बाजीराव की नियुक्ति पर आपत्ति थी। लेकिन बाजीराव ने अपनी रणनीति, नेतृत्व, और अपराजित युद्ध कौशल से सभी आलोचकों को चुप कर दिया।

बाजीराव का युद्ध कौशल: 42 युद्ध, 42 जीत

बाजीराव पेशवा की सबसे बड़ी विशेषता थी उनकी अपराजित युद्ध रिकॉर्ड। इतिहासकारों के अनुसार, उन्होंने अपने जीवनकाल में 42 युद्ध लड़े और एक भी हार का सामना नहीं किया। उनकी रणनीति में गति, आश्चर्य, और गुरिल्ला युद्ध तकनीक का अद्भुत समावेश था। छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद, बाजीराव ही ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने गुरिल्ला युद्ध को नए आयाम दिए।

प्रमुख युद्ध और विजय

  1. पालखेड़ की लड़ाई (1728): इस युद्ध में बाजीराव ने हैदराबाद के निजाम-उल-मुल्क को परास्त किया। निजाम की सेना को दलदली क्षेत्र में फंसाकर, बाजीराव ने अपनी रणनीतिक बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। इस जीत के बाद, निजाम को मुंगी शेवगांव की संधि स्वीकार करनी पड़ी, जिसके तहत मराठों को दक्कन में चौथ और सरदेशमुखी वसूलने का अधिकार मिला।

  2. बुंदेलखंड की विजय (1728): बाजीराव ने बुंदेला नरेश छत्रसाल को मुगल सेनापति मुहम्मद खान बंगश से मुक्त कराया। कृतज्ञ छत्रसाल ने बाजीराव को काल्पी, सागर, झांसी, और हद्यनगर जैसे क्षेत्र जागीर के रूप में भेंट किए और अपनी पुत्री मस्तानी का विवाह बाजीराव से करवाया।

  3. दिल्ली अभियान (1737): यह बाजीराव की सैन्यशक्ति का चरमोत्कर्ष था। उन्होंने दिल्ली पर चढ़ाई की और मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला को अपनी ताकत का अहसास कराया। हालांकि, बाजीराव ने दिल्ली पर कब्जा नहीं किया, लेकिन इस अभियान ने मराठा साम्राज्य की शक्ति को पूरे भारत में स्थापित कर दिया।

  4. भोपाल की लड़ाई (1737): इस युद्ध में बाजीराव ने एक बार फिर निजाम को पराजित किया, जिससे मराठा साम्राज्य का मालवा और गुजरात पर प्रभुत्व स्थापित हुआ।

इनके अलावा, बाजीराव ने शकरखेड़ला, दभोई, और नासिरजंग जैसे कई युद्धों में विजय प्राप्त की। उनकी घुड़सवारी और भाला चलाने की कला इतनी प्रभावशाली थी कि शत्रु सैनिक उनके नाम से ही भयभीत हो जाते थे।

बाजीराव और मस्तानी: प्रेम कहानी या सामाजिक विवाद?

बाजीराव की जिंदगी का एक महत्वपूर्ण पहलू उनकी दूसरी पत्नी मस्तानी के साथ प्रेम कहानी है। मस्तानी, बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल की पुत्री थीं, जो अपनी सुंदरता, घुड़सवारी, और शस्त्र विद्या में निपुण थीं। बाजीराव ने 1731 में मस्तानी से विवाह किया, लेकिन इस विवाह ने पुणे के रूढ़िवादी ब्राह्मण समाज में हलचल मचा दी, क्योंकि मस्तानी अर्ध-मुस्लिम थीं।

बाजीराव ने मस्तानी के लिए पुणे में 'मस्तानी महल' बनवाया, लेकिन उनके परिवार, विशेष रूप से उनकी मां राधाबाई और पहली पत्नी काशीबाई, ने मस्तानी को स्वीकार नहीं किया। 1734 में मस्तानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम पहले कृष्णराव रखा गया, लेकिन बाद में रूढ़िवादी समाज के दबाव में इसे शमशेर बहादुर प्रथम कर दिया गया।

बाजीराव और मस्तानी की प्रेम कहानी को इतिहासकारों ने अलग-अलग दृष्टिकोण से देखा है। कुछ इसे एक रोमांटिक गाथा मानते हैं, जबकि अन्य इसे सामाजिक और राजनीतिक तनाव का कारण बताते हैं। फिर भी, बाजीराव का मस्तानी के प्रति प्रेम और उनके लिए बनवाया गया मस्तानी भवन आज भी उनकी निशानी है।

बाजीराव की पुण्यतिथि: रावेरखेड़ी में अंतिम यात्रा

28 अप्रैल 1740 को, मात्र 40 वर्ष की आयु में, बाजीराव पेशवा का निधन मध्य प्रदेश के रावेरखेड़ी में नर्मदा नदी के तट पर हुआ। इतिहासकारों के अनुसार, वे एक सैन्य अभियान से लौट रहे थे, जब बुखार के कारण उनकी तबीयत बिगड़ गई। उनकी मृत्यु ने मराठा साम्राज्य और पूरे भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति थी। उनकी पत्नी काशीबाई और पुत्र जनार्दन ने रावेरखेड़ी में उनका अंतिम संस्कार किया।

रावेरखेड़ी में उनकी समाधि आज भी इतिहास और धर्म का एक महत्वपूर्ण स्थल है। 1926 में, प्रसिद्ध इतिहासकार यादव माधव काले की अध्यक्षता में यहां उनकी पुण्यतिथि मनाने की परंपरा शुरू हुई, जो आज भी जारी है। यह स्थान न केवल बाजीराव की वीरता का प्रतीक है, बल्कि मराठा साम्राज्य के गौरवशाली इतिहास की याद दिलाता है।

बाजीराव का योगदान: मराठा साम्राज्य का विस्तार

बाजीराव पेशवा ने मराठा साम्राज्य को अटक से कटक तक विस्तारित करने का सपना देखा था, जिसे उन्होंने काफी हद तक साकार किया। उनकी नीति थी, "मुर्झाते हुए वृक्ष की जड़ पर प्रहार करो, शाखाएं अपने आप गिर जाएंगी।" इस नीति के तहत, उन्होंने मुगल साम्राज्य के कमजोर केंद्रों पर आक्रमण किया और मराठा शक्ति को उत्तर भारत तक फैलाया।

उनके शासनकाल में, मराठा साम्राज्य ने मालवा, गुजरात, बुंदेलखंड, और दक्कन में अपनी सत्ता स्थापित की। उन्होंने न केवल सैन्य विजय प्राप्त की, बल्कि प्रशासनिक सुधारों के माध्यम से मराठा साम्राज्य को संगठित भी किया। बाजीराव की मृत्यु के 20 वर्ष बाद, उनके पुत्र बालाजी बाजीराव (नानासाहेब) के शासनकाल में मराठा साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचा।

बाजीराव की विरासत: इतिहास में उपेक्षा?

बाजीराव पेशवा की वीरता और योगदान के बावजूद, भारतीय इतिहासकारों ने उन्हें वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे। कई इतिहासकारों ने उनकी प्रेम कहानी को उनकी सैन्य उपलब्धियों से अधिक महत्व दिया। 2015 में संजय लीला भंसाली की फिल्म "बाजीराव मस्तानी" के रिलीज होने तक, आम जनता में उनकी प्रसिद्धि सीमित थी। इस फिल्म ने बाजीराव को एक रोमांटिक नायक के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन उनकी सैन्य रणनीति और नेतृत्व को भी कुछ हद तक उजागर किया।

आज, सोशल मीडिया पर उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर कई लोग उनके शौर्य को याद करते हैं। उदाहरण के लिए, एक यूजर ने लिखा, "चीते की चाल, बाज की नजर, और बाजीराव की तलवार पर संदेह नहीं करते।" यह कथन उनकी अद्वितीय रणनीति और युद्ध कौशल को दर्शाता है।

बाजीराव से प्रेरणा: आज के लिए सबक

बाजीराव पेशवा का जीवन हमें कई महत्वपूर्ण सबक सिखाता है:

  • नेतृत्व और दृढ़ता: कम उम्र में पेशवा बनने के बावजूद, उन्होंने अपनी योग्यता से सभी को प्रभावित किया।
  • रणनीतिक सोच: उनकी गुरिल्ला युद्ध तकनीक और शत्रु को आश्चर्यचकित करने की रणनीति आज भी सैन्य अध्ययनों में प्रासंगिक है।
  • सामाजिक समावेश: बाजीराव ने ऊंच-नीच के भेद को नकारते हुए सभी सैनिकों के साथ एक सैनिक की तरह व्यवहार किया।
  • प्रेम और कर्तव्य: मस्तानी के साथ उनके संबंधों ने सामाजिक रूढ़ियों को चुनौती दी, लेकिन उन्होंने अपने कर्तव्यों को कभी नहीं छोड़ा।

निष्कर्ष

पेशवा बाजीराव प्रथम की पुण्यतिथि हमें उस महान योद्धा को याद करने का अवसर देती है, जिन्होंने मराठा साम्राज्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी वीरता, रणनीति, और नेतृत्व आज भी हमें प्रेरित करते हैं। रावेरखेड़ी में उनकी समाधि न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है, बल्कि भारत के गौरवशाली अतीत की साक्षी है। आइए, इस पुण्यतिथि पर हम बाजीराव पेशवा को श्रद्धांजलि अर्पित करें और उनके सपने—हिन्दू स्वराज—को जीवित रखें।



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